हर एक मौसम का बहार है रमज़ान

हर एक मौसम का बहार है रमज़ान
———————- डॉ एम ए रशीद , नागपुर
हज़रत इब्ने उमर रजि से रिवायत है कि हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “जब तुम रमज़ान का चांद देखो तो रोज़े रखो और जब शव्वाल का चांद देख लो तो इफ़्तार करो अगर बादल हो तो 30 रोजे पूरे कर लो ।” इस प्रकार की दैनिक इबादतों को इस्लाम धर्म में सूरज के साथ जोड़ दिया गया है और कुछ इवेंट्स को चांद के साथ जोड़ा गया है । सूर्य उदय से पहले फजर की नमाज़ अदा की जाती है , सूरज के उत्थान की समाप्ति पर जोहर का समय हो जाता है । जब सूरज की धूप पीली पड़ जाती है तो असर की नमाज़ का समय हो जाता है । सूर्य अस्त हो जाए तो रोज़ों के इफ़्तार और मगरिब की नमाज़ का समय हो जाता है। रात में जब आसमान पर सितारे चटक जाते हैं तो ईशा का समय हो जाता है। इस प्रकार दैनिक इबादतों को सूरज के साथ जोड़ा गया है।
मुसलमानों को दैनिक इबादतों में इसकी बहुत ज्यादा सरलता की गई है। उनके पास अगर घड़ी नहीं है तो भी वे जंगल या समुंदर में रहते हुए सूरज की वस्तु स्थिति को देखकर समय का निर्धारण या उसका ध्यान रखते हुए नमाज अदा कर सकते हैं । क्योंकि अल्लाह ने नमाजियों को समय सीमा के अंदर नमाज़ अदा करना अनिवार्य करार दिया है । इन समयों को सूरज की स्थिति के साथ इतना आसान कर दिया है कि व्यक्ति को घड़ी की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है और वह नमाज अदा कर लेता है। व्यक्ति समुद्र में हो कि शहर में वह सूरज के अनुसार उसकी दशा देखकर अपनी नमाज़ों को अदा कर सकता है। लेकिन चांद के साथ अल्लाह ने विभिन्न इवेंट का बंदोबस्त किया है । उन्हें चाँद से जोड़ दिया गया है ।
मुसलमानों के महीने की शुरुआत और उसका अंत चंद्रमा से संबंधित किया गया है । चांद दिखाई दिया तो साल का अंतिम महीना जुल हिज्जाह का आरंभ हो जाता है फिर चांद दिखाई दिया तो मुहर्रम का महिना जो साल का पहला महिना है शुरू हो जाता है । इसी तरह चांद के निकलते ही रमज़ानुल मुबारक का नौवां महीना शुरू हो जाता है । वर्ष भर में सूर्य और चंद्रमा के समय में अंतर रहता है।
जब सूर्य के साथ समय निश्चित होता है तो भविष्य के पूरे वर्ष के लिए एक कैलेंडर बनाया जा सकता है, जो प्रत्येक वर्ष के लिए एक ही कैलेंडर पर्याप्त होता है।
यह सामान्य बात है कि चंद्र काल में चंद्र वर्ष सौर वर्ष से दस दिन कम होता है। यह छोटा होता है इसलिए ईद हर साल दस दिन पहले आती है। इबादतों में ऋतुएं और मौसम बदलते रहते हैं । इस प्रकार मुस्लिम समुदाय को गर्मी , ठंडी और वर्षा ऋतु में इबादतों का अवसर मिलता रहता है। यह वरदान अल्लाह ने मुस्लिम समुदाय की इबादतों को इस चांद के साथ जोड़ कर किया है। हर एक मौसम का बहार बनाकर रमज़ान को नेयमत के रूप में प्रस्तुत किया है। यदि सूर्य को कैलेंडर मान लिया जाए तो मुस्लिम समुदाय के रोज़े हमेशा ठंडी के मौसम में ही रहेंगे। जो लोग गर्मियों में रोज़े रखते हैं, उनके रोज़े हमेशा गर्मियों में होंगे और लम्बे समय तक लोगों को रोज़े रखने में कठिनाईयां होंगी। लेकिन अल्लाह ने चंद्रमा के साथ इसे जोड़ दिया कि वे प्रत्येक वर्ष दस दिन के अंतराल से आते रहते हैं।
इस प्रकार रमज़ानुल मुबारक के रोज़े कभी शीत ऋतु में आएंगे और कभी गर्मी या वर्षा ऋतु में । हर प्रकार की बरकतों से रोजेदार फायदा प्राप्त कर सकेंगे । इस्लाम में चंद्र काल को हर किसी बात के साथ जोड़ा गया है । जकात की अदायगी , महिलाओं की इदत्त का समय , यौमे आशूर वगैरह ।
इस्लामी साल का आरंभ हमेशा नए चांद के साथ होता है। इसलिए हमें चांद की 1 तारीख को चांद देखने का प्रबंध करना चाहिए । आसमान पर इस चांद को देखना सुन्नत है । जैसे कि कि पिछले दिन बहुत से लोगों ने रमज़ान की खुशी के लिए उस का चांद आसमान पर देखा। चांद देखकर दुआ मांगना भी सुन्नत है। यह दुआ पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम से उद्धृत है कि “ऐ अल्लाह इसे तू हमारे लिए बरकत वाला बना , ईमान और सलामती और इस्लाम की तौफीक के साथ निकला हुआ बना , वे कार्य जो तुझे पसंद हैं और जिन से तू राजी है । ऐ चांद तेरा और मेरा रब अल्लाह है । यह दुर्भाग्य की बात है कि कहीं-कहीं चांद देखने के इस कार्य को छोड़ दिया जा रहा है । जब पिछले महीने की चांद की 29 तारीख निकल जाए तो आसमान पर नए चांद देखने की कोशिश करना चाहिए । वह दिखाई दे या ना दे सुन्नत का सवाब मिलेगा । पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमें एक सीधा-साधा तरीका बता दिया कि रोज़ा रखो जब रमज़ान का चांद देख लिया कर लो , जब शव्वाल का चांद देख लो तो इफ़्तार कर लिया करो। शव्वाल का चांद दिख जाए तो रमज़ानुल मुबारक का महिना समाप्त हो जाता है । संभावनाओं के आधार पर पर रमजान या अन्य महीने की गणना नहीं की जानी चाहिए। चांद देखने का एक स्वरूप यह है कि हमें खुद अपनी आंखों से चांद देखना चाहिए। दूसरा स्वरूप यह है कि किसी दूसरे मुसलमान ने चांद देखकर गवाही दी जो सबकी नजर में विश्वसनीय हो तो स्वीकार योग्य होती है। पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के समय में भी ऐसा हुआ था कि किसी दूसरे के चांद देने की गवाही को उन्होंने स्वीकार कर लिया था । और रोज़ा रखने और ईद करने का आदेश दिया था ।
मां हज़रत आयशा रज़ि फरमाती हैं कि हज़रत मोहम्मद साहब माहे शाबान के दिन और इसकी तारीखें जितना ध्यान से याद रखते थे इतने ध्यान से और दूसरे महीने की तारीखें याद नहीं रखते थे। रमजान का चांद देख कर रोज़ा रखते थे । और अगर शव्वाल को चांद दिखाई नहीं देता तो 30 दिन गिनकर फिर रोज़ा रखते थे । रमज़ान का चांद सिद्ध करने के लिए शहादत और सूचना काफी है । लेकिन ईद के चांद के सबूत के लिए धर्माचार्यों के अनुसार दो धार्मिक और विश्वसनीय मुसलमानों की गवाही की आवश्यकता पड़ती है । हमें धार्मिक निति संगत कार्य करने पर ध्यान देना चाहिए।