सहानुभूति का महीना है रमज़ान का महीना

सहानुभूति का महीना है रमज़ान का महीना
बीते वर्षों कोविड में दिखाई दिए थे इसके अनेकों उदाहरण
——————- सुमैया शेख़ , नागपुर
हम सब ने रमज़ान के बारे में बहुत सुना है । यह एक ऐसा महीना है जिसमें पूरे माह रोज़े रखे जाते हैं और रोज़ों का समय सूर्योदय से पहले शुरू होता है और सूर्यास्त के समय रोज़ा खोलना पड़ता है । रोज़े के उद्देश्यों में सिर्फ भूख और प्यास की मुख्य बात नहीं है, लेकिन यह मनुष्य को ‘मानवता और सहानुभूति’ से प्रशिक्षित होने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करता है । मनुष्य को हर युग में मार्गदर्शन की आवश्यकता होती रही है कि वे आपस में मिलजुल रह सकें किसी दुश्मनी के जाल में न फंस सकें , दुश्मनी के जाल में फंसाना शैतान का ही काम है । इस संबंध में पवित्र क़ुरआन की सूरा युसूफ़ की पंक्ति क्र . 5″ के अनुसार “शैतान वास्तव में मनुष्य का खुला दुश्मन है”।
हर इंसान स्वभाव से अच्छा होता है और इसीलिए उसके मन में एक-दूसरे के लिए अच्छी भावनाएँ होती हैं लेकिन वह अक्सर अपने दुश्मन यानी शैतान से हार जाता है और बुराई में शामिल हो जाता है। इसलिए अल्लाह (ईश्वर) सर्वशक्तिमान ने इंसान को रमज़ानुल मुबारक जैसा खूबसूरत तोहफा दिया है ताकि वह पूरे महीने खुद को भूखा-प्यासा रख कर दूसरों की भूख-प्यास को महसूस कर सके। झूठ , चुगली , लड़ाई , झगड़ा , गाली गलौज , अवैध कामों और इच्छा शक्तियों की ख्वाहिशों से खुद को अल्लाह के लिए रोके रखे । एक व्यक्ति को वर्ष भर जो नैयमतें प्राप्त होती हैं, वे एक निश्चित अवधि के लिए वर्जित हो जाती हैं। जबकि अल्लाह सर्वशक्तिमान को किसी को भूखा या प्यासा रखने की ज़रूरत नहीं है …बल्कि वह यह सिखाता है कि जिन लोगों ने कभी भूख का स्वाद नहीं चखा है, जिन्होंने कभी प्यास की तीव्रता को महसूस नहीं किया है, जिन्होंने कभी सुखमय ,आनंदमय जीवन की महरुमी का अनुभव नहीं किया है, जिन को भूख से पहले खाना और प्यास से पहले पानी मिला…. वे अपने उन इंसानों और भाइयों के दर्द और पीड़ा को महसूस कर सकें, जिन्हें एक समय का भोजन नसीब हो और दूसरे समय वे भूखें रहते हैं।
इसी तरह इस रमज़ान की बरकत से इंसान अपने जैसे दूसरे इंसानों के दर्द को महसूस करने के अनुभवों से गुज़रता है। फिर यह कि उसमें अपने भाइयों की पीड़ा को दूर करने की इच्छा पैदा होती है , वह मानवता का हितैषी बन जाता है इसे ‘सहानुभूति’ कहते हैं।
पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तो पहले से ही रमज़ान को ‘शहरुल मवासात’ यानी परोपकार , सहानुभूति के महीना की संज्ञा से नवाज़ा है । पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा कि “यदि कोई व्यक्ति रोज़ा रखता है, लेकिन बुराइयों से न रुके, झूठ बोलना और ग़ीबत को न छोड़ें, लड़ाई और झगड़े करता रहे, तो उस को भूखा प्यास रहने के रोज़े से कुछ हासिल नहीं होता। “इसी तरह यह भी कहा कि “बहुत से रोज़ेदार ऐसे हैं जिनको उनके रोज़े से भूख प्यास के सिवा कुछ हासिल नहीं होता”। रोज़े व्यक्ति में धैर्य और सहनशीलता का भाव पैदा करते हैं। धैर्य और सहनशक्ति का यह प्रशिक्षण उसे समाज के लिए एक बेहतर इंसान के रूप में उभारता है ।
ज़रा सोचिए उस व्यक्ति के बारे में जो रमज़ानुल मुबारक के इस प्रशिक्षण पाठ्यक्रम को उसके निर्देशों के अनुसार पूरा करेगा, तो वर्ष भर के शेष दिनों में भी यह प्रशिक्षण उस को गरीबों का हमदर्द, कमज़ोरों का सहायक और समाज का एक अच्छा सदस्य बनने में सहायक होगा। मानवता के लिए सहानुभूति कोई मामूली बात नहीं है , बल्कि इसके लिए धैर्य और सहनशक्ति की भी आवश्यकता होती है। यदि कोई आपके लिए बुरा चाहे, तब भी आप उस के लिए सहानुभूति , हितैषी के तुल्य बने रहें, यह बड़े दृढ़ संकल्प और इरादे की बात है। यह धैर्य और सहनशक्ति की भी बात है , जो बल प्रयोग से अधिक बलवान है।
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया कहते हैं कि “सहन करने वाला तो मार डालता है।” …. यानि जिसे सहन करने की शक्ति प्राप्त होगी उसको अद्भुत शक्ति प्राप्त होगी, उसके सामने हर एक शक्ति की कोई हैसियत नहीं रहेगी। इस पवित्र महीने में जहां दुनिया के रब की रहमतें और नेयमतें उतरती हैं वही यह लोगों के साथ की जाने वाली भलाइयों , सम्मान , हमदर्दी के अल्लाह से प्रतिफल का महिना है।
इस महीने में रोज़ों के माध्यम से इन्सान को प्रशिक्षित किया जाता है कि उसमें आत्म-नियंत्रित होने के गुण पैदा हो जाएं। उसे व्यावहारिक रूप से इस बात का चिन्तन मनन करवाया जाता है कि सर्वशक्तिमान अल्लाह की नैयमतों से हर समय लाभ उठाने वाले महरूमों का दर्द समझ सकें। फिर ऐसे सक्षम लोग ज़कात , दान दक्षिणा तथा अन्य मध्यमों से सहायता करके इंसानियत के वास्तविक हितैषी बन जाएं। जैसा कि हमने पिछले वर्षों में देखा की कोविड में जिस तरह की त्राहि मची हुई थी , लोग भूख प्यास और अन्य प्रकार की सहायताओं के लिए परेशान हो रहे थे , इंसानियत दम तोड रही थी , यहां तक कि श्मशान घाट तक शवों को ले जाना दूभर हो रहा था , वहां मुस्लिम समुदाय ने इंसानियत के नाते आगे बढ़कर सभी दुख दर्दों को दूर करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया था। यह ऐसा उदाहरण है जो चहुंओर दिखाई दिया , बहुत से मुस्लिम संगठनों ने मिलकर ये नेक काम किए थे । इससे बढ़कर मुस्लिम समुदाय का एक संगठन ” जमाअत ए इस्लामी हिंद नागपुर” ने “नागपुर महानगर पालिका” के साथ मिलकर पांचपावली में कोविड हेल्थ सेंटर चलाया था।