रमजान के आरंभ होते ही बंदों को मिलने लगती है अल्लाह की सौगातें

रमजान के आरंभ होते ही बंदों को मिलने लगती है अल्लाह की सौगातें
———— डॉ एम ए रशीद , नागपुर
रमज़ानुल मुबारक का चांद दिखते ही जहन्नुम के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं । शैतानों की गतिविधियां रोक दी जाती हैं । अहले ईमान का रिज़्क बढ़ा दिया जाता है जो अन्य माह में समस्याओं से घिरे होते थे रमजानुल मुबारक का चांद दिखते ही उनमें उत्साह और उमंग दिखाई देने लगती है । उनका यह उत्साह और उमंग रमजानुल मुबारक में अल्लाह की सौगात होती है । इस दौरान उसका रिज़्क बढ़ा दिया जाता है । इस रिज़्क में एक माध्यम अमीर होते हैं । जिनके पास अपार संपत्ति होती है , वे अपने गुनाहों को मिटाने और अल्लाह से रिश्ता जोड़ने के लिए इस संपत्ति को गरीबों में बांटना शुरू कर देते हैं । उनकी यह संपत्ति दान दक्षिणा के रूप में जकात , सदकों से भरी हुई होती है । उनके इस कार्य से अल्लाह खुश होता है । अल्लाह ऐसे दान कर्ताओं की मुसीबतों को दूर तो करता ही है , यही दान दक्षिणा उनकी बीमारियों से निजात का जरिया , संपत्ति में बरकत और सुरक्षा की गारंटी का माध्यम भी बनती है । उनकी नेकियों में यही दान बेशुमार बढ़ोतरी करता है।
एक हदीस ग्रंथ के अनुसार पैगंबर हज़रत मोहम्मद सअव कहते हैं कि मेरा रब कहता है रमज़ानुल मुबारक मेरी उम्मती यानी मेरे गुनाहगार बंदों का महीना है। इस महीने में अल्लाह तआला की रहमत उरूज पर रहती है। वह गुनाहगारों की बक्शीश फरमाता है । यह सिलसिला सारी रात जारी रहता है । ऐसा पहली रात और रमजानुल मुबारक की सभी रातों में जारी रहता है।
रमज़ानुल मुबारक में मुस्लिम समुदाय के अंदर अल्लाह की तरफ लौटने का माहौल पनपने लगता है । पूरा समुदाय रोज़ों से लाभ उठाने लगता है । ऐसा वातावरण साल के अन्य दिनों में दिखाई नहीं देता। इस पवित्र महीने में लगातार इबादतों का दौर चल पड़ता है । रोजदारों से दैनिक कामकाज के साथ गुनाह भी रुक जाते हैं । ऐसा अल्लाह से डर और रोजे रखने के नतीजे में होता है।
रमज़ानुल मुबारक के रोजों के संबंध में पवित्र क़ुरआन की दूसरी सूरा की 183 पंक्ति में अल्लाह का आदेश है कि “ऐ ईमान लानेवालो! तुम पर रोज़े अनिवार्य किए गए, जिस प्रकार तुमसे पहले के लोगों पर किए गए थे, ताकि तुम डर रखनेवाले बन जाओ”। यह पवित्र क़ुरआन की ऐसी पंक्ति है कि प्रत्येक रमज़ानुल मुबारक में इसका स्मरण किया जाता है । रमजानुल मुबारक आते ही रोजे रखने वाले अपने कामकाज को व्यवस्थित करने लगते हैं । ऐसी योजनाएं बनाते हैं कि रमजानुल मुबारक की पूरी इबादतें भी हो जाएं और दैनिक कामकाज प्रभावित ना हो सके ।
रोजों के साथ दैनिक कार्य को अंजाम देना बड़ी बुद्धिमत्ता का कार्य है। रोजों के साथ इसका मतलब यह है कि रोजेदार में तक्वा का महान गुण पैदा हो । अल्लाह के उस डर के साथ रोजे रखना कि छोटे से गुनाह भी न हो सकें और इबादतों के साथ दैनिक कामकाज भी जारी रह सकें ।
यहां सोचने समझने की बात है कि रमजान के रोज़ों को बड़े उत्साह के साथ रखा जाता है । बड़ी बड़ी इबादतें की जाने लगती हैं । लेकिन रमज़ानुल मुबारक के जाते ही यह उत्साह भी समाप्त होता सा दिखने लगता है, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।
रमज़ानुल मुबारक के महिने में घर बाहर का माहौल इबादतों से भरा होता है। पवित्र क़ुरआन का पठन बहुत अधिक हो जाता है। इसका पठन शिक्षाप्रद होना चाहिए। इसी क़ुरआन ने अज्ञानता, रुढ़िवादी परंपराओं का अंत किया था । आज फ़िज़ूल खर्ची , धोखाधड़ी , भ्रष्टाचार , अनैतिकताओं ने जड़ पकड़ लिया है । यह सब क़ुरआन पर अमल करने से दूर हो सकती हैं । एक अच्छा समाज अस्तित्व में आ सकता है।