कश्मीर फाइल्स के पीछे की साजिश और कश्मीर त्रासदी का सच – भाग- 6

जाकीर हुसेन 9421302699
भारत स्थिति कश्मीर में हालात कभी भी बहुत अच्छे नहीं रहें हैं। आजादी के बाद कश्मीर ने इस्लाम के आधार पर बने पाकिस्तान में न मिलने का फैसला किया था। कश्मीरी लोग (सभी जाति और धर्म के लोग कश्मीरी पण्डित और मुसलमान भी) अपनी स्वायत्ता के लिये मांग कर प्रदर्शन कर रहें हैं तब से लेकर आज भी क्योंकि कश्मीर में जनता से रायशुमारी कराने के वायदे से भारत के मुकरने और उसके जोर-जबर्दस्ती और गैर-लोकतांत्रिक आचरण की वजह से कश्मीर समस्या लगातार उलझती चली गयी जिसका नतीजा कश्मीर घाटी की मुस्लिम आबादी में लगातार बढ़ते अलगाव के रूप में सामने आया। कश्मीरी मुस्लिम आबादी के बीच भारत की राज्यसत्ता से बढ़ते अलगाव के बावजूद 1980 के दशक से पहले कश्मीरी पण्डित अल्पसंख्यक आबादी के ख़िलाफ पूर्वाग्रही भले ही हों लेकिन नफरत और हिंसा जैसे हालात नहीं थे। ऐसे हालात पैदा करने में 1980 के दशक में घटी कुछ अहम घटनाओं की खास भूमिका थी।
खास बात यह है कि भाजपा ज्यों-ज्यों मजबूत होती है त्यों-त्यों कश्मीरी पंडितों में अपनी पैठ बढ़ाती है, उनके भीतर नफरत के बीज भरती है, वे अपने ही पड़ोसी मुसलमानों से नफ़रत करने लगते हैं। ज्यों-ज्यों नफरत बढ़ती है त्यों-त्यों कश्मीर समस्या बढ़ती जाती है
1989 तक कश्मीरी पण्डित और मुसलमान कश्मीर में बहुत खुश थे, दोनों एक साथ मिलकर सारे तीज-त्यौहार मनाते थे और कुछ क्षेत्रों में तो कश्मीरी पण्डितों का वर्चस्व था पर 1989 तक किसी को कोई दिक्कत नहीं हुई। ना ही कश्मीरी पण्डितों को, ना ही मुसलमानों को और ना ही किसी अन्य धर्म और जाति के लोगों को। तो फिर ऐसा क्या हो गया कि 1989 के लोकसभा के आम चुनाव में दो सीटों वाली भाजपा 88 लोकसभा सीटें जीत जाती है। और उसके बाद काश्मीर घाटी जलने लगती है।
उस समय कश्मीर में कश्मीरी पण्डितों की संख्या भले कम थी, लेकिन पुलिस और प्रशासन में कश्मीरी पण्डित अच्छी-खासी संख्या में थे। जिस तरह पूरे देश में सेना का हिन्दू धर्म करने का अभियान चलाया, जाता रहा है उसी तरह कश्मीर में सारे हिन्दू सरकारी कर्मचारियों का हिन्दूकरण किया गया। अर्थात उन्हें साम्प्रदायिक बनाया गया। दूसरी तरफ मदरसों में भी ऐसे मौलानाओं को बढ़ावा दिया गया, जो मुसलमानों में हिन्दुओं के प्रति नफ़रत पैदा कर रहे थे। इन्हें नफरत पैदा करने के लिए सरकारी अनुदान मिलता रहा। हिन्दुत्व से प्रेरित सेना पुलिस और खुफिया विभाग के लोगों ने भोले-भाले कश्मीरी पंडितों को अपने विश्वासपात्र की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया। जिससे कश्मीरी पंडितों की छवि बिगड़ती चली गयी वे सेना पुलिस के मुखबिर के रूप में बदनाम होते गये। कट्टरपंथियों ने आम कश्मीरी मुस्लिमों के मन में यह बात बैठा दी कि कश्मीरी पण्डित काफिर है और वह मुस्लिमों पर अत्याचार करने वाली सेना पुलिस का साथ दे रहे है। ऐसे में जब पुलिस ने कट्टरपंथियों के खिलाफ कार्रवाई की तो उसकी जद में ज्यादातर आम मुस्लिम ही आए। इससे कश्मीरी पंडितों के प्रति कश्मीरी मुसलमानों के भीतर नफरत बढ़ती गयी। इसी से कुछ कश्मीरी पंडितों पर हमले भी हुए।
इसी के साथ कश्मीरी पण्डितों को कश्मीर से निकालने की बात चलने लगी। शुरू में कश्मीरी मुस्लिमों ने इसका विरोध किया, लेकिन बाद में कुछ लोग डर के मारे और कुछ लोग यूनिटी की भावना और कुछ लोग धार्मिक भावना से चुप हो गए।
शेष अगले भाग में….
*अजय असुर*