ऐसे होते हैं तकवाधारी व्यक्ति

ऐसे होते हैं तकवाधारी व्यक्ति
——————- डॉ एम ए रशीद, नागपुर
तकववाधारी व्यक्ति दुनिया नहीं नेकियां कमाते है , घोटाले , भ्रष्टाचार नहीं दान करते हैं । कानून का उल्लंघन नहीं बल्कि कानून के पाबंद होते हैं । शरियते मोहम्मदी का दिलो जान से आदर व सम्मान करते हैं । इस लिए तकववाधारी व्यक्तियों को शरियते मुहम्मदी में इस्लामी हीरोज़ के नाम से नवाजा गया होता है।
तकववाधारी व्यक्ति बनने और तक्वे के गुण पैदा करने के लिए पवित्र माह रमजान उन व्यक्तियों का प्रशिक्षण करता है। रमजानुल मुबारक के रोज़े तक्वा प्राप्त करने का महत्वपूर्ण साधन हैं। जब इंसान रोज़ा रख लेता है फिर कितना ही पापी , गुनाहगार अर्थात उन जैसा कैसा भी हो लेकिन रोज़ा रख लेने के बाद उसकी कैफियत ऐसी हो जाती है कि भयंकर गर्मी के दिनों में भी अत्यधिक प्यास लगने पर वह पानी नहीं पा पाता । यदि वह कमरे में अकेला है और कोई दूसरा उसके पास मौजूद नहीं है , यहां तक कि कमरे में ठंडा पानी भी उपलब्ध है , उस वक्त व्यक्ति का दिल चाहत करता है कि इतनी भयंकर गर्मी की दशा में ठंडा पानी पी लूं । लेकिन क्या वह व्यक्ति मटके फ़िज़ में से ठंडा पानी निकाल कर पी लेगा ? ऐसा वह बिल्कुल भी नहीं कर सकेगा। यदि वह पानी पी भी ले तो किसी को क्या खबर मालूम पड़ेगी। उस पर कोई टोक करने वाला नहीं होगा। इतना हो जाने पर यह दुनिया वालों के सामने रोज़ा दार ही कहलाया जाएगा और शाम के वक्त बाहर निकल कर लोगों के साथ इफ्तारी भी कर ले और खा पी ले तो किसी को भी पता नहीं चलेगा कि उसने रोजा तोड़ दिया था।
इतना सब कुछ हो जाने के पहले पहल उसमें मौजूद तकवा के गुणों के कारण वह पानी बिलकुल भी पी नहीं सकता। क्योंकि वह जानता है कि अगर मुझे कोई नहीं देख रहा है और मैंने जिसके लिए रोज़ा रखा है वह अल्लाह तो मुझे देख रहा है। यही कारण है कि अल्लाह फरमाता है कि रोज़ा इंसान में तकवा पैदा करता है
एक हदीसे क़ुदसी में अल्लाह का इरशाद है कि रोज़ा मेरे लिए है और मैं ही उसका बदला दूंगा । किसी पुण्य कार्यों के बारे में बताया गया है कि उसका लाभ 10 गुना अधिक मिलता है , किसी में 70 गुना अधिक लाभ मिलता है , किसी को 100 गुना अधिक पुण्य मिलता है। यहां तक कि सदके का पुण्य 700 गुना है।
लेकिन रोजे के बारे में फरमाया गया कि इसका पुण्य मैं दूंगा । क्योंकि रोज़ा उसने मेरे लिए रखा था। भयंकर गर्मी के समय उसके गले में कांटे चुभ रहे थे, ज़बान प्यास के मारे सूख रही थी , मटके या फ्रिज में ठंडा पानी मौजूद था और ऊपर से यह भी अकेलापन था। उसे कोई देख नहीं रहा था। इसके बावजूद मेरा बंदा सिर्फ इसलिए पानी नहीं पी पा रहा था कि उसके सामने उत्तरदायित्व का डर और एहसास था। इस जवाबदारी का नाम ही तकवा है। अगर यह अहसास पैदा हो गया तो व्यक्ति के अंदर तत्व पैदा हो गया होता है। रोजे का एक रूप तक्वा भी है और इसको प्राप्त करने के लिए रोज़ा एक सीढ़ी है ।
अल्लाह ने फरमाया कि हम ने रोज़े इसलिए अनिवार्य किए हैं ताकि उससे तक्वे का प्रशिक्षण दिया जा सके।
रोजा तक्वे की बेहतरीन सीढ़ी है । तक्वे का अर्थ यही है कि अल्लाह की महानता को ध्यान में रखते हुए पापों से बचा जाए।
यह सोच कर कि मैं अल्लाह का बंदा हूं और अल्लाह मुझे देख रहा है अल्लाह के सामने मुझे पेश होकर जवाब देना है । इस कल्पना के साथ जब इंसान गुनाहों को छोड़ता है तो इसी का नाम तकवा कहलाता है। अल्लाह फरमाता है कि वह व्यक्ति जो इस बात से डरता है कि मुझे अल्लाह के दरबार में हाजिर होना है , खड़ा होना है इसके परिणामस्वरूप अपने आप को नफसानी ख्वाहिशात से रोकता है यही तकवा है ।
रमजान से सिर्फ 1 दिन पहले पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस्लामी हीरोज़ अर्थात सहाबियो को इकट्ठा करके अपने एक उद्बोधन में कहा था कि मुसलमानों तुम पर एक बड़ी बरकतों , रहमतों वाला महीना आने वाला है । इसकी विशेषता पर ध्यान देते हुए कि इस महीने में फराइज का एहतमाम करोगे तो एक फ़र्ज़ का सवाब 70 फ़र्ज़ के बराबर और नफिल का सवाब फर्ज़ के बराबर हो जाएगा ।
हमें चाहिए कि हम रमजानुल मुबारक में इबादतों का ऐसा माहौल बनाएं कि इस महीने में अल्लाह की ज़्यादा से ज़्यादा इबादतें करें।
रमजानूल मुबारक में ऐसी कल्पना है कि दिन में रोज़ा रखा जाता है और रात में तरावीह पढ़नी पड़ती है लेकिन वास्तव में यह महीना कल्पना की धारणा से बहुत आगे है । अल्लाह ने यह महीना इंसान की शुद्धीकरण , प्रशिक्षण और ओवरहालिंग के लिए फरमाया है । ठीक वैसे ही जैसे किसी एक गाड़ी की यदि उसकी सर्विसिंग ना की जाए तो उसके पार्ट्स में खराबी पैदा होने लगती है और फिर उसकी सर्विसिंग या ओवरहालिंग करानी पड़ती है। फिर क्या हमारी मशीनरी 11 महीने के बाद में आध्यात्मिक मेल कुचैल का शिकार नहीं हो जाती होगी । अल्लाह ने इस महीना को इसलिए अता फ़रमाया है कि हम अपने बदन के मेल कुचैल को दूर कर लें। अपनी आत्मा की पवित्रता और शुद्धता का प्रबंध करें। फिर तकवा परवान चढ़ता है । तब तकवाधारी व्यक्ति ना झूठ बोल पाते हैं , ना धोखा देते हैं, ना लेन-देन और नापतौल में कमी करते हैं , वादा करने पर वादे को निभाते हैं , सच बोल कर ही जीवन जीते हैं और सही मायने में कर्तव्य निष्ठा का पालन करते हैं। मिलावट और ख़यानत उनसे कोसों दूर होती है। समय और कानून के पाबंद होते हैं। हमदर्दी से मालामाल होते हैं। वे किसी का मजाक नहीं उड़ाते और शांति प्रिय जिंदगी व्यतीत करते हैं। गुस्सा और चुगली उन में नहीं पाई जाती। झगड़े झांसों से वे दूर रहते हैं । बल्कि कोई उन से गाली गलौज करे तो वे उसे तौहफा देकर गले से लगाते हैं। कोई मदद के लिए आए तो आधी रात को तैयार रहते हैं। किसी ने उनसे कर्ज़ लिया हो तो वे उसके सामने जाने से कतराते हैं। कोई भूखा हो तो उसकी भोजन व्यवस्था में जुट जाते हैं। ऐसे अनेकों गुणों के मालिक होते हैं तकवाधारी व्यक्ति। यदि समाज में ऐसे तकवाधारी व्यक्तियों का गिरोह या जमाअत बन जाए तो समाज में हरित क्रांति का दौर आ सकता है।