इस्लाम जीवन जीने का ईश्वरीय मार्गदर्शन

डॉ अदनान उल हक़ खान,नागपुर
इस्लाम मूल शब्द ‘सलाम’ से निकलता है. जिसका अर्थ है ‘शांति’, इसका दूसरा अर्थ है अपनी इच्छाओं को अपने पालनहार खुदा के हवाले कर देना. अत: इस्लाम शांति का मजहब है. जो सर्वोच्च सृष्टा अल्लाह के सामने अपनी इच्छाओं का त्याग करने से प्राप्त होती है. इस्लाम पर चलने वाले मानव समूह को ‘मुस्लिम’ कहते हैं. मुस्लिम का अर्थ ईश्वर का आज्ञापालक और फरमाबरदारी करने वाला होता है. इस्लाम कोई साधारण धर्म, संप्रदाय या संस्कृति नहीं है. बल्कि यह संपूर्ण जीवन व्यतीत करने का ईश्वरीय मार्गदर्शन है.
इस्लाम को मानने वाले विश्व भर में’ करोड.ों की संख्या में हैं. लेकिन प्रश्न यह उठता है कि इसकी उत्पत्ति कैसे हुई? कुछ लोगों में गैर समझ है कि इस्लाम के प्रथम प्रणेता 1400 साल पहले धरती पर आए पैगंबर मोहम्मद (स.) हैं. लेकिन यह गलत है.
इस्लाम को जीवन जीने का मार्ग अल्लाह ने सर्वप्रथम मानव व प्रेषित हजरत आदम अलैहिस्सलाम को दिया. उसके पश्चात भी अनेक ईश्वरदूत जो अल्लाह का संदेश लेकर धरती पर आए वे मुस्लिम थे. इस्लाम का इतिहास मानव उत्पत्ति जितना ही पुराना है. इसीलिए इस्लाम को जानने के लिए मानव उत्पत्ति को जानना बहुत आवश्यक है.
अल्लाह ने हजरत आदम और उनकी पत्नी हजरत हव्वा को मिट्टी से पैदा किया और फरिश्तों से कहा कि वे आदम के आगे झुक जाएं. शैतान के सिवाय सब झुक गए, क्योंकि उसे घमंड था कि वह आग से बना है और मिट्टी के आगे कैसे झुके. इस तरह वह अल्लाह के समक्ष इनकार करने वाला हो गया.
अल्लाह ने कहा कि अदम तुम और तुम्हारी पत्नी जन्नत में रहो. लेकिन एक वृक्ष के निकट न जाना, नहीं तो तुम जालिम ठहरोगे. शैतान ने दोनों को बहका कर उस वृक्ष का फल खिला दिया. इस गलती के बाद आदम (अ.) ने अल्लाह से माफी मांगी और अल्लाह ने उन्हें धरती पर भेजा अपना प्रेषित बनाकर. तब से ही ईश्वरी मार्गदर्शन होता आ रहा है.
डॉ अदनान उल हक़ खान,नागपुर